दिल्ली को रामभरोसे छोड़कर विदेश यात्रा पर गए राहुल गांधी ने लौटते ही केजरीवाल पर बरसना क्यों शुरू कर दिया?
इसकी भूमिका महाराष्ट्र चुनाव में करारी हार के बाद तैयार हो गई थी । पार्टी के नीति निर्धारकों ने राहुल से पूछा कि हम कब तक अपना मुस्लिम वोट बैंक क्षेत्रीय दलों के हवाले करते रहेंगे ?
इस बात पर गहरी चिंता जताई गई कि कांग्रेस ने बड़े यत्न से मुस्लिम और दलित वोटबैंक संजोकर 1000 साल तक भारत की सत्ता पर काबिज रहने का स्वप्न देखा था। सब ठीक भी चल रहा था। लेकिन एक एक कर देश की करीब 28 क्षेत्रीय पार्टियां उसका मुस्लिम वोटबैंक ले उड़ीं । मतलब महफिल कांग्रेस ने सजाई और ताल ठोकने आ गए तमाम क्षेत्रीय दल ?
नतीजा ? पैदल हो गई कांग्रेस। बेरुखी इस कदर कि जो कभी मिन्नतें करते थे, कभी यूपीए तो कभी इंडी बनाते थे, उन्होंने बात करना भी बंद कर दिया ? उसका वोटबैंक ले उड़े अखिलेश, उमर, तेजस्वी, केजरीवाल, ममता, कम्युनिस्ट और शरद ? अब चुनाव नजदीक हैं तो स्टालिन भी सीधे मुंह बात नहीं करते।
हालत यह हो गई कि दिल्ली राज्य में पिछली बार कांग्रेस पार्टी को 4.30% वोट मिले पर लोकसभा चुनाव में मिलकर लड़ने के बावजूद आम आदमी पार्टी को ले डूबे ? केजरीवाल ने पंजाब में कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया था। ममता ने ऐसा ही किया और अब अखिलेश ने भी कांग्रेस को बीच चौराहे लाकर पटक दिया। उमर ने मोदी से लगभग हाथ मिला लिया है। बिहार में तेजस्वी भी अकेले लड़ने का मन बनाए बैठे हैं।
नतीजा ? दलित वोटबैंक तो पहले मायावती और फिर बीजेपी ले उड़ी थी । अब मुस्लिम वोट बैंक का सफाया कर क्षेत्रीय दल कांग्रेस के कोर वोट को डकारने को तैयार हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के भरोसे पार्टी को छोड़ने की बजाय राहुल ने दिल्ली राज्य जीतने के लिए तमाम ताकत झोंक दी है।
बीजेपी को तो वे रोजाना गाली देते हैं, कल केजरीवाल के भी खूब कपड़े फाड़े। राहुल ने सभा भी दिल्ली के उस सीलमपुर में की जो कभी कांग्रेस का गढ़ था और जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। वैसे कांग्रेस में जिसे भी मुस्लिम वोट बैंक खोने की चिंता हुई, यह चिंता जायज है । कांग्रेस का हिन्दू वोट तो पहले ही बीजेपी ले उड़ी थी, अब मुस्लिम भी यदि क्षेत्रीय दल ले उड़े तो राजनीति में कांग्रेस क्या घास खोदेगी ?
यद्यपि मतदान में कुल 20 दिन रह जाने से पहले अब की सक्रियता दिल्ली में क्या रंग दिखाएगी, कहना मुश्किल है। लेकिन इंडी की बर्बादी के दौर में कांग्रेस यदि वास्तव में उठ खड़ी हुई तो आम आदमी पार्टी का खेल तो बिगाड़ ही देगी। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि उसके पास एक उपलब्धि है और वही उसके पतन का कारण है। वह है राहुल गांधी, जिनके पास शब्दों का अकाल है।
मोदी अडानी के अलावा उन्हें जो याद है वह है जाति जाति। पता नहीं किसने उनके दिमाग में यह सब भर दिया है। आश्चर्य की बात है कि जिन प्रियंका को समझदार समझा जाता था वे खुद राहुल की पिछलग्गू बनकर रह गई हैं। उन्हीं की बोली बोलती हैं । खैर ! कांग्रेस अपना मुस्लिम वोट बैंक बचा ले हम तो यही चाहते हैं । एक न एक दिन छद्मवाद और पाखंड का पतन होता ही है।