"बुरा न मानो, होली है!"
✍️ मुकेश तिवारी
रंग बरसे गली-गली, बस्ती-बस्ती शोर,
कोई भागे पानी बचाए, कोई भागे छोड़!
पिचकारी की मार पड़ी, चिल्लाया बेचारा,
गाल गुलाबी कर दिए, बन गया प्रेम पुजारा!
गोरी बोली, "रंग न डालो!" देखो कैसी बात,
होली पर भी बच न पाई, छलकी मन की जात!
सजनी रूठी, साजन बोला, "अरे जरा मुस्काओ!"
रंग लगा के गाल पे बोला, "अब जरा इठलाओ!"
दादा जी भी भांग चढ़ाकर, नाच रहे थे मगन,
दादी जी ने देखा तो बोलीं, "अभी भी दिल जवान!"
मौसम आया प्यार का, होली का है रंग,
रंगों में सब एक हुए, छूटे सारे भंग!
साहब जी भी घर से निकले, सफेद कुरता डाल,
घर लौटे तो बीवी बोलीं, "ये क्या हुआ हाल?"
बोले, "बाजार गए थे, बचा नहीं खुद को,
साला शर्मा गुलाल लगा के, बोल गया मुझको!"
नेता जी भी मंच पे बोले, "होली प्यार की रीत,
जात-पात सब भूल के, बजाओ ढोल मजीत!"
पर अगले ही दिन आ गया, फिर वही अख़बार,
फिर से दो दल भिड़ गए, खेल गए सरकार!
तो भाई लोग, संदेश यही है, खुल के खेलो रंग,
दिल में जो भी भरा हुआ है, धो डालो संग!
कोई बुरा न माने भाई, कर दो मन को साफ,
होली का त्योहार है, प्यार के हैं रंग हज़ार!